- लेखक : बुद्धसेन चौधरी

लेखक : बुद्धसेन चौधरी

यी सैबकोई जानै छै, कि थारु यै भूमिमे जलमल छै । या अनादिकालसे रैह रहलछै । यै समुदायके आपन अलगै किसिमके संस्कृति या पहचान छै । बहौत संस्कृति मेसे जितिया पावैन एक चियै । यी पाबैन थारु जनिजाइत सब आपन धिया पुताके निक जिवन, उन्नति, पराक्रम या वकर सफलताके लेल करैछै । नेपालके तराइ भागमे रहल थारु महिला या वकर अरोसिया परोसिया ठाम या गाममे रहैबला दोसरो समुदायके मधेसी, दलित महिला सब यी पावैन श्रद्धा या भक्तिके साथ करैछै । इन्डियाके विहार राज्यके साथै दोसरो ठाममे सेहो यी पावैन मनाबैछै । अखैन यी पाबैन विदेशमे सोहो मन्याल जाइछै । तैदुवारे यी पाबैन अखने राष्ट्रिय पावैनके रुपमे आपन जगह बनेनेछै । पैहने यी पाबैनके मौकामे नेपाल सरकार जितिया मनाइ बला थारु समुदायके जनिजाइत के छुट्टी दैछेलै । लेकिन वादमे यी पाबैन त दोसरो समुदाय मनाबैछै कैहके अखैन जितिया मनावैवला जनित जाइत सबके छुट्टीके बेबस्था करनेछै ।

यी एकटा चलन या अटुट विश्वास चियै । यै पावैनसे घर परिवारमे एकटा लबका किसिमके बल पाबल जाइछै । यी पाबैन महताइर या धिया पुतावीचके असिम सदभाव या माया प्रेम चियै । त लैहरा या ससुरा जोरैके एकटा बलगर कँरि सेहो चियै । आपन पुरना पुरना सखि बहैनपाके साथै बाप महताइर भ्या बहैन संगै आपन सुख दुख बाँटैबाला बहौत निक अवसर सेहो चियै । यी एकटा ब्रत, उपास त चियैके, ओकर साथै साथ यी एकटा पहचान चियै, एकटा परम्परा चियै, एकटा संस्कृति सेहो चियै । यै मे थारु समुदाय के बंशके सम्बन्ध जोरलछै ।

जितिया कथा त ठाम मुतिबिक कुछने कुछ फरक छै । लेकिन ओइ के सनेस एके छै । कथामे त पृथ्वी, धरती, अकाश, पताल केनङखे भेलै सेहो बतेनेछै । लेकिन ऊ सबके छोइरके छोट कथा छै जे यी चियै । पुरापुर्व कालमे उत्तरी भारतीय प्रायदिपमे साली बाहन नामके एकटा महा प्रतापी राजा रहै । ओइ राजाके रानीके नाम सहाय रहै । राजारानीके कोनो धिया पुता नै रहै । बुढहारि उमेरमे एकटा बेटीके जलम भेलै । ऊ बच्चा राजकुमारीके नाम मसवासी राखल गेलै । बच्चा कनियेटासे बहौत सुसिल, सुन्दर रहै । सयम हंसिखुसीसे बितल गेलै । जब राजकुमारी जवान भेलै । राजा ओकरा बियाह करैले राजकुमार ताकैके हुकुम देलकै । बहौत देशसे राजकुमारीके लेल राजकुमार देखल गेलै । यी बात राजकुमारी मसबासीके पता चललै । राजकुमारी आपन महताइरके ज्याके कहलकै । हम बियाह नै करबौ । हम तोरा सबके छोइरके नै जाइले चाहै चियै । हम भगबानके तपस्या करैले चाहै चियै । हमरा दरबारसे कातमे लगै एकटा कुटि बन्यादे । हम ओहैमे रहबै भगबानके अराधना करैत रहबै । राजा यी बातसे बहौत दुखित भेलै लेकिन करतै त कि करतै भगबानके कोबलेसे राजकुमारी के जलम भेल रहै । ऊ बिबस भ्याके बेटिके बात मानैले तैयार भेलै ।

राजकुमारी मसवासी कुटीमे रहै लागलै या भिनसरे सुरुजके किरन उगैसे पैहने लदिमे ज्याके अस्लान करै आ चैल आबै । आपन काममे लाइग ज्या लागलै । समय बितैत गेलै एक दिनके बात चियै राजकुमारी के लदिसे आबैले बेर भ्या गेलै या सुरुज उइग गेलै । सुरुजके किरन राजकुमारीके देहमे पैर गेलै । जेकर चल्ते राजकुमारी भारी भ्या गेलै । मतलब गर्भबति भ्या गेलै ।

समय पुगलाके बाद राजकुमारी एकटा सुन्दर बौवाके जलम देलकै । ऊ कनियेटासे बहौत चन्चल रहै । बढलाके बाद गाम घरमे खेलाबैले ज्या लागे लागलै । कोनो कुछोमे ऊ सबके जितलै । गाम घरके लोक सब ओकरा जितुवा कहे लागलै । एक त राजदरबारसे जोरल रहै दोसर ओइहनङो सब चिजमे जितलै । त ओकर नामे जितुवा रैहगेलै । अखैनियो थारु समुदायमे नाम गाम ओकर गुन या स्वभावसे राखैके चलन छेबे करै ।

जितुवा जब ढेरबा भेलै । गामके छोरा सब जितुवाके केनाखे हराइबै तैमे आपन दिमागके खियाबे लागलै । सब दिन लखा जे जे खेल रहै ऊ त खेलबे करलकै । एकटा येहेन खेलके रचना करलकै जेकर नाम रहै अन्हरा अन्हरीके डाइढ काटनाइ । खेलके बहौत नियममे से एकटा नियम रहै । महताइरके नाम ल्याके अन्हरा अन्हरीके डाइढ काटल घरके भितरमे ढुकनाई या बापके नाम ल्याके बहार भेनाई । जितुवा सैब नियमके पालन करलकै लेकिन ओकरा बापके नाम थाह नै रहै । तै दुवारे ऊ डाइढसे बहार नै आबैले सकलकै । आब त गोटे गामके छौरासब ओकरा खिचारे लागलै । सबकोई कहै यी अनेरबा के बेटा चियै । आब केनाखै बहार येतै । येकरा त बापके नामे नै थाहछै । जितुवा चुपचाप डाइढके भितरमे मुह लरक्याके बैठल रहै । ओहै छौरामे से एक गोरे दौरल गेलै । मसवासिके कहलकै जितुवा अन्हरा अन्हरीके खेल खेलने छौ । मसवासी दौरल येलै या बेटाके भोइर पाँजके पकैरके कहलकै तोहर बाप के नाम सुरुज चियौ । ताब ऊ सुरुजके नाम ल्याके डाइढसे बहार येलै ।

जितुवाके भोइर राइत निन नै भेलै । बिहान भेलै त महताइरके कहलकै हम आपन बाबुके भेटैले जेबै । महताइर कहलकै ऊ सम्भब नै छौ । तबो जितुवा जिद करलकै । महताइर ओकरा पेरामे खाइले कुछो कलौ या पैसा देलकै या बिदाह करलकै । जितुवा एक दिन दुई दिन करैत मैहनौ बापके ताकैले चलैत रहलै । सुरुज बुझहलकै जे यी कोनो धरानि घर नै आबै लौटैबाल छै । ताब ऊ लोकके रुप धारन कैरके । जितुवाके भटेलै या कहलकै । वौवा कोने जाइचिही । जितुवा कहलकै हमर बाप सुरुज चियै ओकरे भेटैले जाइचियै । बहौत समझेलकै । तबो नै मानलकै या ऊ आपन रस्ता फेर चैल देलकै । ताब ऊ लोक जितुवाके कहलकै । रे बौवा हमही सुरुज चियै तोहर बाप । ले आब त घर घुमबिही । जितुवा ताबो ने मानलकै । कहलकै हमर संगै चल । नेत लोक केहङखै पतियेतै कि हमे बाबुसे मिलल रहियै । ताब सुरुज आपन शक्तिसे जितुवाके बरदान देलकै या कहलकै आइसे तोहर नाम जितमहान भेलौ । जे तोहर पुजा अराधना करतै ओकर धियापुता सबके तोहर लखा दुख भोगैले नै परतै या ऊ जिबन्त रहतै । यी कोन बिधि करतै । सुरुज बिधि सेहो बतेलकै जे कि निचलका भागमे लिखलछै ।

जितुवा आइबके नगरबस्ति मे यी बातके सोर करलकै, ढोलहा पिट्या देलकै । समय येला पर आसिन मैहनाके अनहैरिया सतमि, अठमि, नवमि तिथिमे गाम या नगरके लोक सब जितमहानके ब्रत राखलकै । विधि मुताबिक ऊ सब सतमि तिथिमे अनगुतै नर्वदा लदिके सर्वदा घाटमे एकठाम भ्याके अस्लान कैरकै । पाबैनके सुरु करलकै ।

लदि कात एकटा बरका पाकैरके गाछ रहै । गाछके उपरमे चिल्हौर या निचा घौंघैरमे सियार रहैछेलै । दुनु गोरेमे बहौत मिलान छेलै । एक दोसरके भासा बुझहै छेलै । सियारनि पुछलकै चिल्हौरनी से कि हे सखि आई कि बात चियै जे घाटमे दाइमाइ सब थेहथाह करैछै । चिल्हि कहलकै जे सुरुज के बंशमे एकटा प्रतापी जितमहान रहै ओकरे ब्रत यी सब करैले येलछै । फेर सियारनी पुछलकै जे इ ब्रत करनेसे कि फाइदा हेतै । चिल्हि जवाफ देलकै । जे यी ब्रत नेम निस्ठासे करतै ओकर धियापुता सब जिवा जिबन्त रहतै कोनो किसिमके दुख कलेस नै हेतै । ताब फेर सियारनि कहैछै जे अपनो सब यी ब्रत करबिहि त नै हेतै ? चिल्हौरनी कहलकै जरुर हेतै ।

जाब दाइ माइसब घाटसे चैल गेलै त येहो दुनु गोरे घाटमे ज्याके खैर माइट सेलहेलकै । ओकरेसब लखा कैरकै यी ब्रत लेलक । सतमि तिथिके अन्तिम पहरमे ओटधन सेहो खेलकै । अठमि तिथि भुखले पियासले रैहके घाटमे येलहा पबैनकरी संगे जितियाके खिसा सेहो सुनलकै । जाब राइत परलै त । सियारनिके भुख लागलै । ऊ भुखसे छटपट करै । संजोगसे वोहै दिन गाममे एकटा सौदागरके बच्चा मेर गेल रहै या लदि कात गाइर देने रहै । सियारनी ऊ खाइले ताकै । लेकिन उपरसे चिल्हौरनी देखैत रहै । ताब ऊ बीच बीचमे हल्ला कैरकै कहै । हे सखि सुतल चिही कि जागल । चिल्हौनि कहै जागले चियै । बेर बेर जे पुछे त चिलहौरनि कहलकै कथिले यी पुछै छे ऊ चुप भ्या गेलै । एक दुई दाइब बोलेनेसे नै बोललै त सियारनि बुझहलकै कि सखि सुइत गेलै । ऊ धोइधसे निकैलके निकहैत छुपकैत ज्या के गारलहा बच्चाके उखाइरके भोइर पेट खेलक या फेर चुपे चाप कनहिक लाइबयोके धोइधमे ढुइक गेल । उपरसे सियारनि यी सब देखैत रहै ।

भिनसर भेलै त दाइ माइ सब फेरो घाटमे आइबके पारन करलकै । सियारनि चिल्हौरनि के पुछै जे हे सखि पारन नै करबिही । ऊ त मौस खाइत देखने रहै । रिससे कहलकै हम नै करबौ तोरा बर भुख लागलछौ त क्या ले । सियारनी राइतके मौस लाबने रहै ओहैसे पारन करलकै । सियारनि पाछे पबैनकरि सबके बचल खुचल चिजबिज से पारन करलकै ।

चिल्हौरनि के मालुम रहै जे सियारनिके ब्रत भ्रष्ट भ्या गेलछै । येकर प्रत्ये हम केनङखे लेबै । दुनु गोरे तिर्थके लेल चललै । बहौत किसिमके तीर्थ गेलै देवी देवताके दरसन करलकै । अन्तमे प्रयागके कुम्भ मेला पुगलै या दुनु गोरे ओहैसना आपन प्रान तेजलकै । तीर्थमे देह तेजनेसे मनुस योनिमे जलम हैछै से जनविस्वास छै । ऊ सब दोनो भास्कर महाजनके घरमे जेमा बेटिके रुपमे जलम लेलकै । जेठकि बहैन चिल्हिके नाम सोमता या छोटकि बहैन सियारनि के नाम बेमता भेलै । जवान भेलापर दुनु गोरेके बियाह भेलै । जेठकी सोमताके महथा घरमे बियाह भेलै त छोटकि बेमताके राजा मलय केतुसे बियाह भेलै । सोमताके घर दिया पुतसे भैर गेलै ओकरा सातटा बेटा भेलै । बेमताके कोनो धियापुता नै । हेबो करै त मोइर मोइर ज्या । छोटकि बहैन बेमता डाहहे जैर जैर मोरै या आपन दैयासे रिस करै । जितमहान के पुजाके दिन रानी बेमता आपन महलमे खटपरन द्या देलकै । राजा मलयकेतु के जाब यी बात मालुम भेलै त । आइबके पुछलकै जे हे महारनी तोरा कि भेलै ? कथिले खटपरन देने चहक । रानी कोनो जवाफ नै देलकै । कहलकै सतबचिया करु ताब हम कहब कि हमरा कथि भेलछै ।

राजा रानीक के बात माइनके सतबचिया करलकै । ताब रानी उठलै या कहलकै । हमरा एकोटा ने धियापुता आइछ या हमर बहैन के सात सात टा बेटा । हमरा ओकर सातो बेटामे काटल मुर चाही । राजा त रिससे चुर भ्या गेलै या कहलकै यी केना भ्या सकैछै । लेकिन रानिसे सतबचिया केने रहै । मानै परलै । सिपाहीके पठेलकै या कहलकै मुरि काइटके लाबैले । राजाके हुकुम मुताबिकके काम भेलै । रानि के देख्याल गेलै । सबके सातटा डाल बन्याके ललका कपरामे मुरी बाइन्हके । दासिके हाथै पारन करैके बास्ते बहैन सोमताके घर पठेलकै । सोमताके जितिया ब्रतके चल्तै सातोटा बेटा जि गेलै । डालिमे बान्हल्हा मुरि सब नरियर भ्या गेलै । अने रानि बेमता असियाल रहै जे बहैन सोमता या ओकर सातो पुतौहसब कन्ना रोहैट करैत हमर लग येतै । रानि राजाके फेरसे कहलकै जे यी केना भ्या गेलै । राजा जवाफ देलकै जे सातोटा मुर त सामनेमे छेलौ । ताब राजा सोंचलकै जे यहाँ के बहैन पहौनका जलममे कोनो सत ब्रत या आचरण करने हेतै ताब ओकर धिया पुता सब जि गेलै । यहाँ नै करनै हेबै ताब यहाँ के धियापुता नै हैये । हेबो करैये त मोइर जाइये । यी बात सुइन के रानि चपु भ्या गेलै ।

दोसर साल जाब जितिया के समय येलै त रानी बेमता आपन बहैनके घर ज्याके कहैछै जे हे बैहना यैबेर हमहु जितिया पाबैन करबै । सोमता कहैछै । जितिया करैसे पैहने हमर संगे चल । ऊ सब नर्वदा लदिके सर्वदा घाटमे पुगलै । सोमता कहैछै तोरा कुछो याद आबैछौ । बेमता कहैछै नै । ताब सोमता कहैछै । पहौनका जलममे हमे चिल्हौरनि या तोहे सियारनि रिहि । यहै बुढ पाकैर के गाछके उपरमे हम या निचामे तोहे रहैत रिहि । दुनु गोरे जितिया करने रिहि । तोहे उपासके दिन ज्याके मुर्दा उखाइके खेलहि । हम भुखले रहलियै । तोहर ब्रत भ्रस्ठ भ्या गेलौ । ताब तोहर धियापुता नै हैछै या हेबो करैछौ त मोइर जाइछौ । नै पत्याइ चिहि त चल ओइ गाछके धोइधमे अखैनियो मनुस के हड्डि छेबे करै । हड्डि देखते मातैर बेमताके सब बात याद येलै या ऊ आपन देह ओहैसना त्याग कैर देलकै । राजा ओकर काम क्रिया क्या देलकै । यी कथा ओर्या गेलै । दोसरो जलमके कथा सेहो जोरल छै । ओहो जलममे चिल्हौरनि के जित हैछै । एक जलम के करलहा खराब काम जम्मो जलम तैक पछारैछै ।

यै किसिम से जितिया पाबैन के कथा छै । वनङ त ठाम ठाममे दोसर किसिमके कथा छै । लेकिन कथा ने निचोड एकै छै । प्रकृतिके सिरजल सैब पौस परानि सब एक दोसरसे जोरलछै । एक के नास हेने से दोसरके असर हैछै । सबके मिलके रहबाके चाहि । आपनसे जेठके आदर या छोटके मामत करबाके चाहि । कोनो भि चिज विधि पुर्वक निस्ठासे करने से सफलता जरुरे हाथ लागैछै । यी पाबैन के पुरापुर्व कालमे जतहेक महत्व रहै अखैन ओहबेक नै बलकि ओहौ से बेसि भेलछै ।

जितिया पावैन के विध
यी पावैन आसिन मैहना अन्हैरिया के सतमी, अठमी या नवमी तिथिमे मानल जाइछै । सरदरमे कहनेसे कलस्थापन के ९,१० दिन पैहने यी पावैन करल जाइछै । यी पावैन उठाइले (पाथै के लेल) खर दिन होना चाहि । मतलब यी ब्रत शुरु करैले तिथिमे सैन, रैब, या सोम दिन परैके चाहि । अर्थात् सैन दिन लाई, रैब दिन उपास या सोम दिन पारन परतै ताबै येकर शुरु कैर सकैछै । लबका कनिया सब कहियो कहियो त यी साइत ले असिय्याल असिय्याल पावैने नै क्याके धिया पुता के म्या बैन जाइछै ताबो ने सुइध लागैत रहैछै ।

थारु समुदायमे यी ब्रत लैहरमे लैके चलन छै मगर सौसरोमे ब्रत लैमे कोनो बरना नैछै । लबका लबका कनियाके बाप भ्या त जनम अठमिसे पैहनेसे अपान आपन बहैन बेटी के लैहर ल्या जाइछै । यै पावैनमे जितके प्रतिक के रुपमे जितमहान के पुजा करैछै । खानपिन के सौखिन थारु समुदाय के यी पावैन लैहर से लैले आबै बला दिनेसे शुरु हैछै । मेजबानके स्वागत करैले अलग किसिमके खानपान के व्यवस्था करने रहैछै । जै मे पेरबाके मौस अनिवार्य रहैछै । जे मौस नै खाइछै वोकरले वोइहनङ खान पान मिलाइने रहैछै । आइकौल त जाब पवैनकरी लैले नै आबैले सकैछै त फौनो कैरके कैह देछै कि दैया आबिहे हम लैले नै आबैले सकबौ ।

जितिया पावैनके आपने किसिमके बिध छै । यै पावैनमे प्रकृतिके सिरजलहा अन्न पाइन या चीजबिजके लारचार करल जाइछै । लवका पवैनकरीके लेल डलिया सजिसजाउ सहित वोइमे बिखमानके पता, जितियाके फुल, कचनाइरके फुल, घेराके पता, घेराके फुल, बाङके फर, चिकनी माइट, खैर, करु तेल, धानके मोइर, सिकि, पान, सुपारी, दही, चुरा, गुँड, धुप या अगरबती, अछत, बौटरा, गौरा खर, तुलसीके पता, सिनुर, केराके डमखोर, सिकीके धनुस, थारी, कलस, पैसा, फल फुलके सङे सङ हरदियान या करिया रङके धजा सेहो रहैछै । वोकरा जरुरी मुताबिक समय समयमे ठाम ठाममे पुजा करल जाइछै ।

लाइके दिन
पावैनके पहौनका दिनके लाइ दिन वा लेह्या सेहो कहैछै । लेह्याके मतबल लेहेनाइ (अस्लान करनाइ) चियै । पवैनकरि सबेरे अंगनाघर क्याके लगका पोखैर, लदी, बान्ह, दह, कुपामे ज्या के लहावै (स्लान) छै । जैठना लहाइछै ओहैठना भिजले नौंवा सङे घाटमे चौका क्याके घेराके दुइटा पतामे पुरुब भर घुइम के सुरुज भगवानके और जितमहान बाबाके दुइटा पुजा करैछै । जै पुजामे खैर, माईट, करु तेल, घेराके फुल चरहाबैछै । तकर वाद जलके ढार दैछै । या फेन गोर लाइगके पुजा पाइनमे भस्यादैछै । अकर बाद बचलहा पुजा सामग्री अर्थात् चिक्नि माइट, खैर तथा करुतेलसे फेन निकसे लहावैछै और तब लवका या चिकन (सफासुघर) कपरा लग्याके घर आबैछै । घर आइबके आपन घरके देवताके सेहो निपपोत करैछै । तकर बाद खाना खाइछै । यै किसिमसे पहौनका दिनके बिध पुरा हैछै । तब भोइर दिन ओटघनमे खाइबला चिजबिजके तैयारीमे लाइग जाइछै ।

ओटघन
ओटघनके मतलब भुख सहैसे पैहनै करैबला खानपीन हैछै । ओटघन खास कैरके तिथिके मुताबिक तोकल समयके भितर करलजाइछै । यी सतमि तिथिके भितर हेबाके चाही । नेत सोझसाझसे सुरुज उगैसे पैहने या कौवा बोलैसे पैहने ओटघन ख्याल जाइछै । यैमे बहौत पकवान रहैछै । खानपिन कैरके सखि बहैनपा सब गफसफ करैत सुतैछै या बडका भिनसरे उइठके दिन भैरके ओरियेलहा चिज बिजके आपन स्वादके मुताबिक पक्याल जाइछै । ओटघन खान पिनमे कोनो किसिमके बन्देज नै रहैछै । ओटघन के लेल ओलके तरकारी या माछ त रहबै करैछै । जे माछ नै खाईछै वोकर लेल साग तरकारी, दुध, दही, चुरा, केरा लखा पकवान रहैछै । ओटघनमे मौस नै खाइछै । ओटघन खाईसे पैहने गोसाइ घरके ओसरा पर चिल्हौर या ओसराके निचामे सियारके घेराके पतामे एक एकटा पुजा दैछै । जै पुजामे दही, चुरा, केरा गुँड, सुपारी रहैछै । तेकर वाद पुजामे जल ढार क्याके गोर लागैछै, पुजा उठाबैछै या बच्चा सब परसाद बन्याके ख्यालेछै । तेकर बादे पवैनकरनी सब अपन मन भोइरके खाइछै ताकि उपासके दिन निकसे सैह सकि ।

उपास
उपासके मतलब भुखे रहनाइ हैछै । ओटघन खेलाके वाद भैर दिन पवैनकरि सब भुखले पियासले कुछो ने ख्या पि के निराहार रहैछै । गाम घरमे माइन्जन, जेबार या सैबके निक हैबला ठाममे पवैनकरनी सब आपन आपन डलामे पुजाके डलियासंगे श्रद्धासे बैठ के जितिया खिसा सुनैछै । बीच बीचमे कथा कहैबला के मुताबिक कखनो सुरुज भगवानके, कखनो जितुवाके, कखनो गरुरके, कखनो चिल्हौरके, कखनो नर्हियाके पुजा करल जाइछै । लबका लबका पबैनकरनि सब त खिसा कहैबला ठाममे आपन आपन पोखैर कोइरके एकटा महारमे पाकैर के ठाईर गारने रहैछै और पोखेरमे पाईन पौरने रहैछै । पोखेरके चारु कोनमे हरदियान या करिया रङके धजा गारने रहैछै । डलियामे ओरियेलहा चिज बिज सङे खिसा सुनैत पण्डितके मुताविक पुजा करैछै । जेकर जितिया खसल रहैछै वोकर डलामे एक थारि चौर या पैसा सेहो रहैछै ।

खिसा ओरेला के बाद पबैनकरी सब के जेकर कोइख नै बिगरल रहैछैसे तिन दाइब कुसाईरसे जिह खोइध दैछै । खास क्या के मामि, भौजि या काकि यी काम करैछै । पबैनकरनी के भाइ केरा के डमखोर के बनेलहा घोडामे चहैरके सिकि के धनुस या सिकि के काड से बहैन के तिन दाइब पिठ मे मारैछै । खिसा कहैबला के सब कोइ पाँचटा धान के मोइर या पाँचटा केरा के साथै साथ फलफुल सब दान मे दैछै । कपडा लगाइ मे कोनो किसिम के बन्देज नै छै । लब कपडा हेबे के चाही से नैछै लेकिन कपडा सफा होना चाहि । तेकरबाद लग मे लगलहा धाम मे सखि बहैनपा के साथे साथ धिया पुता के ल्याके जाइछै । गाम घर मे जितमहान के मुरुत सेहो बनेने रहैछै । ओइसना ज्याके पुजापाठ सेहो करैछै । राइत मे पबैनकरी सब के मनोरञ्जन के लेल बहौत किसिम के नाच गान सब हैछै । जै मे धुमरा नाच, सोरैठ, मान, झमटा लखा नाच सब रहैछै । अखैन त लबका लबका किसिम के फिल्म, ड्रमा, भिडियो सेहो देखैके चलन छै ।

पारन
ब्रत के वाद खाइ पियैले सुरु करै वला एकटा बिध पारन चियै । पारन तोकल समय से पैहने नै करैछै । पारन के दिन सैब से पैहने अस्लान कैरके आपन आपन घर के देबता के लिप पोत कैरछै । अपना नै सकैछै त घरके दोसरो लोक सब यी काम क्या सकैछै । पारन के लेल पैहिने घरके देबतामे केराके टुपिबला पतामे हथौवा मुसरासे कुटलहा चुरा, दही, केरा, पाँचटा पान, पाँचटा सुपारी चढ्हाइछै । चिरखा सेहो बारने रहैछै । धुप अगरबती देने रहैछै ।

तकरवाद अङनामे पुरुब भर घुइम के निप(पोइतके चौका बन्याल जाइछै । चौकामे एकटा से बेसी बहैन सब रहैछै त जेठ बहैन सिरामे बैठैछै या तकर बादसे छोट सब बैठैछै । सबके आपन आपन अगामे निपलहा चौका सामने बैठैछै । तेलसे दुइटा डाइर ताइनके ओइ डाइढमे सिनुरसे डाइढ तानैछै । दुनु डाइर के बीचमे पहिने तुलसी के पता ताब पानके पता राखैछै । ओईमे अछत, पान, सुपारी, बोटरा, राखैछै । घेरा के पतामे दहि, गुड, चुरा, घेराके फुल, जितियाके फुल, कचनाइर फुल, बाङके फर, चढावैछै । गौरा खरके कङगौरिया औङरि या बेङठा औङरि दने खोइटके तीन तिन दाइव अगा पछा (पुरब पछिम) या देहना बमा (उतर दछिन) दिसना फेकैछै या ताब पुजामे जलढार क्याके पाँचटा बौटरा, पाँचटा अक्षता दाँत मे नै छुब्या के घोटैछै या तकर बाद दही चुरा खाइछै या खाइले शुरु भ्याजाइछै ।

जेकरा जितिया सौपै के रहैछै या आन सालसे जितिया के ब्रत नै लैके रहैछै । से अक्षत या बौटरा के नै घोइँटके राइख लैछै । तकरवाद डला डाली या चीज बिज सबके लगके पोखैर या लदीमे ज्या के भस्या देछै । दही चुरा प्रसाद के रुप मे धियापुता के दैछै । पान या सुपरी आपने खाइछै । जे नै सुपरी खाइछै ऊ भस्या दैछै ।

ओइ दिन गाम घरमे खसी के मौस खाइछै । ओहै दिन घर छोरैले नै हैछै । सब पबैनकरिसब ओइ दिन घर नै जाइछै । तेकर दोसर दिनके वाद अपान बहैन बेटीके सङे सङ भैगना भैगनी के लबका लबका लता कपडा के साथ साथ बिदाह करैछै । कतहेक पबैनकरी सब त समा भसेनाइ तैक लैहर मे रहैछै । यै किसिम से जितिया पाबैन एक बरस के लेल बिदाह भ्या जाइछै ।

(लेखक थारु संस्कृतिका अध्येता हुनुहुन्छ ।)

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